लाल चौक को उसके विवादित ऐतिहासिक स्वरूप से आज़ाद करने की आवश्यकता है. 370 के निष्प्रभावी होने पर और तमाम विपक्ष की इस मुद्दे विशेष पर कोई सिलसिलेवार या ठोस बहस के अभाव में, कश्मीर को देश के अन्य किसी भी राज्य या प्रांत के समकक्ष देखना लाल चौक के ऐति हासिक महत्व पर एक टिप्पणी है. टिप्पणी यह है कि बौद्धिक उन्माद और छाया वादी रोमांच के परे लाल चौक का कोई महत्व आज के भारत और उस भारत के एक हि स्से कश्मीर में नहीं ब चा है. आज कश्मीरियत अपने नाम पर की जाने वाली दोयम द र्जे की राजनीति से आज़ादी चाहता है. भारत में एकीकृत होने के बाद, अन्य प्रदेशों की तरह कश् मीर की अवाम वस्तुतः उस मुद्दे पर उसी संविधान से न्याय की गुहार कर सकती है जिस संविधान की शरण में देश के सभी प्रदेशों की सभी सरकारें अ पनी नीतियों से वैश्विक स्तर पर एक मिसाल क़ायम करती हैं. प्रश्न यह है कि क्या हम- कश्मीर और देश की नई पीढ़ी- इस नवीन आरम्भ को सदियों से स ड़ रही भयावह और बासी हो चुकी राजनीतिक आवाज़ों से ऊपर एक नई धुन दे सकते हैं? आँकड़े हमारे समक्ष हैं. किन लोगों ने कश्मीर की सियासत को कुछेक घरों तक नज़रबंद क